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एक पीड़ादायक परिवर्तन
ब्लाग मित्रो,
आप लोग मेरे ब्लाग वांगमय को लम्बे समय से पढ़ते रहे हैं। जहाँ तक मुझे जानकारी मिली है इस ब्लाग को देश-विदेश में पढा जाता रहा है। मुझे अपने लेखन पर समय-समय पर टिप्पणियाँ भी प्राप्त होती रही हैं। इस सब के लिए मैं आप सभी का आभारी हॅूं। मैंने यथासंभव यह प्रयास किया है कि यह ब्लाग गंभीर विषयों पर केन्द्रित रहे और इस पर होने वाली चर्चाएँ ऐसी हों कि उनसे कुछ सकारात्मक प्राप्त हो सके। इस बात में मैं कितना सफल रहा बता नहीं सकता। इसका मूल्यांकन आप लोग ही कर सकते हैं।
पिछले दिनों मेरे ब्लाग पर किसी अनाम व्यक्ति ने कुछ व्यक्तिगत आक्षेपकारी और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं। इन टिप्पणियों से मुझे और मेरे मित्रों को क्लेश पहुँचा। इन्टरनेट सभी को यह सुविधा देता है कि बिना अपना परिचय बताये कोई भी टिप्पणी की जा सकती है। इसके कुछ सकारात्मक पक्ष अवश्य हैं। मगर इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि कोई भी आपके ब्लाग पर उल्टी सीधी टिप्प्णियाँ कर सकता है, गाली-गलौज और गलत शब्दों का इस्तेमाल कर सकता है। इस तरह की बातों से आप अपरिचित नहीं होंगे। उन सज्जन ने वांगमय पर इतनी आपत्तिजनक बातें लिख दी थी कि ब्लाग की गंभीरता नष्ट हुई और यहाँ तक कि मुझे एक पोस्ट ही निकाल देनी पड़ी। इस प्रकार की कुंठित और घटिया मानसिकता के लोग अन्य ब्लागों पर भी यह काम कर रहे हैं और उनके विरुध्द लोग शिकायतें भी दर्ज कर रहे हैं। यह घटियापन वास्तव में हमारे समाज में आ रहे सांस्कृतिक पतन की ओर भी संकेत है। अब लोगों में न तो दूसरों के सम्मान का ख्याल इै और न अपनी ही इज्जत का। खुले आम नेट पर गाली-गलौज हो रहा है और इस गाली-गलौज को ही लोग अपनी वाकपटुता और चतुराई समझ रहे हैं। दूसरों को अपमानित करने में ही एक प्रकार का गर्व अनुभव किया जा रहा है।
वांगमय की प्रकृति एक गंभीर ब्लाग की रही है। आप इस बात से सहमत होंगे कि इस ब्लाग पर गाली गलौज और कुठाग्रस्त मानसिकता के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। आखिर विचार-विमर्श के इस मंच को किसी कुंठित मानसिकता के मलमूत्र विसर्जन का स्थान नहीं बनने दिया जा सकता। हम वैसे भी विषाणुओं से अपना बचाव करते ही हैं।
इसलिए दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अब आप जो भी टिप्पणियाँ प्रेषित करेंगे उन्हे संपादित होने के बाद ही इस ब्लाग पर प्रकाशित किया जा सकेगा। इससे निश्चितरूप से आप सभी को एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा जो कि सामान्यत: वांछित नहीं। लेकिन आप मेरी विवशता समझ रहे होंगे। आशा है सहयोग बनाए रखेंगे।
रघुवंशमणि
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3 comments:
कोई बात नहीं । न चाहते हुए भी हममें से बहुतों को देर सबेर यह करना ही पड़ा ।
घुघूत बासूती
ये सब चलता रहेगा मित्र. मॉडरेशन लगाये रहिये और ऐसे विध्नसंतोषियों के कमेंट बिंदास डिलिट कर दें बिना नम्बर की चिन्ता किये. सभी को यह करना पड़ता है. मनोबल न गिरने दें...हम पढ़ रहे हैं न और भी सारे साथी आपके इस सार्थक प्रयास में आपके साथ है. शुभकामनाऐं.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
आज छुट्टी का दिन था. इन्टरनेट कैफे आई थी कि छूटी बहस को थोड़ा अपडेट करूंगी. यहाँ का तो दृश्य ही बदला हुआ है!!
यह वाकई तकलीफदेह है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर किसी को भी चोट पहुंचाई जाए. इन्टरनेट ने इस तमाशे को और भी पॉपुलर किया है. गनीमत है की जो टेक्नोलोजी इस अवैध प्रवेश को सम्भव करती है वही टेक्नोलोजी इसको रोकने का भी गुर बताती है!! आपने अच्छा किया है. कोई अच्छी बहस शुरू कर रहे हैं!??
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