Wednesday, August 01, 2007

बस-1

कविता

बस-1


बिगड़ गयी है बस
खड़ी है किनारे

ठुक-ठुक
लगाए है ड्राइवर
गाड़ी के नीचे
उत्सुकता से झुके हैं
कुछ लोग

चाय की दुकान
की तलाश में
दस-पाँच

करीब की सवारियाँ
सड़क पर
दो-चार
रोकती हैं आते
जाते वाहन

बाकी कुछ अंदर
झल रहे हैं
उबाउ अखबार

बता गया है परिचालक
टिकट का पैसा
वापस नहीं होगा।



रघुवंशमणि

1 comment:

बसंत आर्य said...

रघुवंश मणि जी, अमहत्व पूर्ण को महत्वपूर्ण बनाना. छोटी छोटी चीजों को अनुभव करना. यही तो है जीवन. चलिए आपको ये रोग लगा रहे.