कविता
बस-1
बिगड़ गयी है बस
खड़ी है किनारे
ठुक-ठुक
लगाए है ड्राइवर
गाड़ी के नीचे
उत्सुकता से झुके हैं
कुछ लोग
चाय की दुकान
की तलाश में
दस-पाँच
करीब की सवारियाँ
सड़क पर
दो-चार
रोकती हैं आते
जाते वाहन
बाकी कुछ अंदर
झल रहे हैं
उबाउ अखबार
बता गया है परिचालक
टिकट का पैसा
वापस नहीं होगा।
रघुवंशमणि
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1 comment:
रघुवंश मणि जी, अमहत्व पूर्ण को महत्वपूर्ण बनाना. छोटी छोटी चीजों को अनुभव करना. यही तो है जीवन. चलिए आपको ये रोग लगा रहे.
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