कविता
बस-4
नानी देखती थी बस
फूटे चश्में से
नाना देखते थे
ऑंखों पर हाथ छा कर
बच्चे दौड़ते थे
बस के साथ-साथ
नाना हो गये खाक
नानी गयीं मर
बच्चे हो गये बड़े
जाने कहाँ खो गयी
वह धूल उड़ाती बस
रघुवंशमणि
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1 comment:
Good poem. Thoda nostalgia hai . Mujhe apna Bachpan yaad aa gaya. Dhanyavad.
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