Saturday, August 04, 2007

इंगमार बर्गमान और छोटा शहर

डायरी

इंगमार बर्गमान और छोटा शहर

इंगमार बर्गमान के बड़े फिल्म निर्देशक होने में तो कोई सन्देह नहीं। उनके निधन पर अखबारों ने यह बात और पक्की कर दी। परिणामत: उनके निधन पर गहरा दुख हुआ। पूरी दुनिया ने यह स्वीकार किया कि वे फिल्म जगत की एक बहुत बड़ी शख्सियत थे। फिल्म जगत को उनका योगदान अनूठा था। फिल्म तकनीक के विकास में यदि बर्गमान न होते तो काफी कुछ अधूरा रह जाता। बर्गमान के बारे में ये सारी बातें कही-सुनी जा रही हैं। और ये सब बातें क्या गलत है? गलत क्यों होगी? लेकिन मेरा दुख दूसरी तरह का है।

बर्गमैन महोदय के बारे में कम उम्र से ही सुनता रहा हूँ। पढ़ता भी रहा हूँ। एक बार सत्यजीत राय के साथ उनका ठहाके लगाता चित्र भी देखा था। अभी भी याद है कि वह जेन्टिलमैन नामक अंग्रेजी पत्रिका में छपा था। उन पर कुछ लेख भी पढ़े। उनकी प्रसिध्द फिल्म का नाम भी जानता हूँ 'द सेवेन्थ सील'। आप चाहें तो इसकी कहानी पर भी कुछ प्रकाश डाल सकता हूँ। इतनी जानकारी कुछ कम नहीं होती। मगर...........

मगर उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद जैसे छोटे शहर में रहने का दुख यह है कि मै बर्गमान महोदय की कोई भी फिल्म न देख सका। ये फिल्में मेरे बेचारे छोटे शहर के किसी थियेटर में लगेंगी इसकी तो कोई उम्मीद ही नहीं। उनको बॉलीवुड से फुर्सत ही नहीं। यहाँ तो केवल व्यावसायिक फिल्में ही जगह पाती हैं। वैसे भी ये टूटते टाकीज खतरे में हैं और कभी भी बन्द हो सकते हैं। ज्यादातर थियेटर बंद ही पडे हैं। यहाँ कोई मल्टीप्लेक्स भी नहीं। यद्यपि कभी किसी मल्टीप्लेक्स में किसी कला फिल्म के चलने की बात थोड़ा अजीब है। वैसे मैने अभी तक मल्टीप्लेक्स में एक मात्र फिल्म देखी है सरकार। वह भी कानपुर में अपने मित्र कवि पंकज चतुर्वेदी और संध्या के साथ। कानपुर को भी फिलहाल फैजाबाद जैसे शहर की तुलना में महानगर ही समझें।

किसी चैनल पर हो सकता हो कभी बर्गमान की कोई फिल्म आयी हो। कह नहीं सकता क्योंकि टीवी के सामने ज्यादा देर तक नहीं बैठता। अब पहले से पता हो कि फलां फिल्म आ रही है तो बात ही कुछ और है। यहाँ के सी.डी. कैसेट विक्रेता भी कुल मारधाड़ की ही फिल्में रखते हैं। नेट की खरीदारी पर पूरा भरोसा नही ंजम सका है अभी तक।

ऐसे में कोई क्या करे?

मैं समझता हॅूं कि मेरा यह दुख नितांत व्यक्तिगत नहीं। बहुत से नेटी मित्र इस दुख से प्रताड़ित होंगे। इसीलिए मैं इसे अपनी इस सार्वजनिक डायरी में जगह दे रहा हूँ। इस प्रकार अब मेरा दुख आपके हवाले है। दुख कहने से दुख कम हो जाता है, ऐसा लोगों का कहना है। कभी-कभी तो इसका निदान भी हो जाता है। बहरहाल यदि आप में से किसी खुशनसीब ने बर्गमान की फिल्में देखी हों तो मदद करें। क्या आप में से किसी के पास वह काम्पेक्ट डिस्क है जिसकी मुझे तलाश है?


रघुवंशमणि

1 comment:

Yunus Khan said...

मुझे लगता है कि पहली बार आपको पढ़ा है । ये मेरा भी दुख रहा है । मुंबई में आने से पहले तक । कभी अलग से पोस्‍ट लिखूंगा अपने ब्‍लॉग ‘रेडियोवाणी’ पर और बताऊंगा कि जब अखबारों और पत्रिकाओं में महानगरों में आयोजित होने वाले फिल्‍म फेस्टिवलों की खबरें छपती थीं तो म0प्र0 के छोटे छोटे शहरों में हम कितना कष्‍ट महसूस करते थे, चलिये सी.डी. का ज़माना है और देर सबेर आपको सी डी मिल ही जायेंगी । मगर आज से पंद्रह बीस साल पहले तो बड़ी दिक्‍कत थी । मैंने कई कई महान फिल्‍में दूरदर्शन पर देखी हैं । कई के बारे में केवल समीक्षाओं और खबरों में पढ़ा है । बर्गमैन की फिल्‍में मुंबई में मिलनी आसान है । पर छोटे शहरों के कष्‍ट इस मामले में बहुत बड़े हैं । अगर आप दिल्‍ली जाते हों या उ.प्र. के किसी बड़े शहर में......तो शायद आपकी समस्‍या का निवारण हो जाएगा । मुझे यू0पी0 की ज्‍यादा जानकारी नहीं, हां म.प्र.में अपने मित्रों से कहकर कुछ पता लगवाया जा सकता था । हालांकि गारंटी नहीं कि वहां भी मिल जाएं । लेकिन आपने बहुत सही सवाल उठाया है और हम खुद को आपके इस दुख का सहभागी महसूस करते हैं ।