Thursday, August 02, 2007

बस-2

कविता


बस-2


''बड़ी भीड़ है
साँस लेना भी
कठिन है

गाड़ी मत रोको
तेज़ चलने पर
लगती है हवा''

कड़ी है धूप
हिलता है राह में
एक बेचारा हाथ

रुकती है बस
चढ़ता है एक
गरियाते हैं सौ

बस में होने
और बाहर होने में
यही फर्क है।



रघुवंशमणि

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