डायरी
एक बहादुर युवती की याद
मैं उस युवती को पूरी तरह से भूल चुका था। यदि शिमला जाते वक्त दिल्ली से कालका जाने वाली कालका शताब्दि ट्रेन में वह अखबार न मिला होता तो फिर याद भी न आती। कैसा दुखद है कि हम उन्हें भूल जाते हैं जो अच्छे काम करते हैं। मीडिया भी उन्हें कभी भूले भटके ही याद करता है।
तो वह अखबार था सेक्टर न्यूज और वह अखबार भी सिर्फ चण्डीगढ़ में वितरित होने वाला पाक्षिक। इसमें सूचना थी कि नीरजा भनोत सम्मान चन्दा असानी को दिया गया है। यहीं नीरजा भनोत की याद स्मृति में कौंध गयी जिसने भारत के अपहृत विमान से तमाम लोंगो को बचाया था और अन्त में दो बच्चों को बचाते हुए स्वयं अपहर्ताओं की गोलियों का शिकार हो गयी थीं। यह घटना 1986 की है। और नीरजा को अपने इस वीरता और साहस भरे कारनामें के लिए मरणोंपरांत अशोक चक्र दिया गया था।
भारत के विमान को चार सशस्त्र आतंकियों ने अपहृत कर लिया था। 17 घंटे के तनाव भरे माहौल के बाद अपहरणकर्ताओं ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं थी। नीरजा भनोत ने साहस और बुध्दिमत्ता का परिचय देते हुए विमान का आपातकालीन द्वार खोल दिया था जिससे बहुत से यात्री बच निकले थे। मगर अंत में दो बच्चों की जान बचाने में नीरजा दिवंत हुई। वे भारत की पहली महिला थ्ीं जिन्हे अशोक चक्र दिया गया था। यही नहीं पाकिस्तान की ओर से उन्हें तमगा-ए-इन्सानियत दिया गया था। अपनी वीरगति के समय नीरजा भनोत की उम्र 23 साल थी।
31.10.2008
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7 comments:
हाँ, आपने अच्छा याद दिलाया ।
घुघूती बासूती
अच्छा किया याद किया......लगातार कुछ ना कुछ लिखें....
एक बहादुर युवती की याद...naman
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद !
bachapan me kabhi ye kahani apani mummy se suni thi sach kahun to us samay iska mahatv pata hi na tha.. aaj aapse suni to garv se sar ooncha ho gaya..
Thanks
सूचनाओं और घटनाओं के इस बेतरतीब अम्बार में हम पिछला कुछ याद भी नहीं रख सकते. जेहन में वही बचता है जो अभी अभी हमारे सामने आ खड़ा हुआ हो!!
नीरजा भनोत के भी मामले में ऐसा ही है. मैं भी पूरी तरह से भूल ही चुका था. ये नीरजा का नहीं हम सबका दुर्भाग्य है!!
बहुत अच्छी जानकारीं। बधाई
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