Monday, November 30, 2015

पराया धन [१९७१]






इधर टेलीविज़न पर पराया धन दोबारा देखी. इस फिल्म को पहले कभी १९८२-८३ के आस-पास फैजाबाद के किसी टाकिज में देखा था. अब ठीक से याद नहीं. लेकिन फिल्म दुबारा देखने की इच्छा इसीलिए हुई कि मालूम था कि फिल्म अच्छी है. वाकई यह एक कम चर्चित मगर अच्छी हिंदी फिल्म है. सुंदर गीतों से भरी यह फिल्म हिमांचल के किसी छोटे से गाँव में फिल्माई गयी है जिसकी प्राकृतिक छटा देखने लायक है.. फिल्म के कुछ बम्बइया नाटकीय हिस्सों को छोड़ दें तो एक बड़ा हिस्सा काव्यात्मक है जो लम्बे समय तक दिल में बसा रहता है. फिल्म देखते समय रेणु या थॉमस हार्डी के उपन्यासों का माहौल याद आ जाय तो कोई आश्चर्य नहीं. इसे निर्देशन और कैमरे का कमाल ही समझाना चाहिए.

इस फिल्म को बलराज साहनी के जबरदस्त अभिनय के लिए याद किया जाना चाहिए जिन्होंने भावनाओं को गजब का अंडरप्ले किया है. जितनी बार देखें नयी चीज लगेगी. शायद बलराज जी के समय तक यह नयी बात रही होगी. आज तक भी हिंदी सिनेमा में उनके स्तर के कलाकार ज्यादा नहीं हुए हैं. उनके अभिनय में भावनाएं बेहद सहजता के उभरती और गुजरती है.

हेमा मालिनी अपने अभिनय की कुछ कमजोरियों के बावजूद शबाब पर थीं और अभिनय के मामले में भी यह उनकी बेहतरीन फिल्मों में होगी. इस फिल्म में चरित्र के विभिन्न पक्षों को उन्होंने सामने किया है. वोह कहीं सीधी गाँव की लड़की है तो कहीं शोख अदा वाली प्रेमिका तो कही जंगली बिल्ली. अजीत अपने परिचित रंग में हैं और राकेश रोशन हमेशा कि तरह औपचारिक.

फिल्म Zclsssic पर फिर दिखाई जा सकती है , मौका न चूकें.

Wednesday, November 25, 2015

कश्मीर पर साहित्य

सलमान रुश्दी / शालीमार द क्लाउन/ उपन्यास 

आतंकवाद की प्रवृतियाँ और धरती का स्वर्ग 

 सलमान रुश्दी की पुस्तक 'सैटेनिक वर्सेज' पर प्रतिबन्ध लगने के काफी दिनों बाद उन्होंने भारत की यात्रा की जिसका उद्देश्य एक उपन्यास लिखना बताया गया. लेकिन रुश्दी ने यह  स्पष्ट नहीं किया कि वे किस प्रकार का उपन्यास लिखने जा रहे हैं या उसकी विषयवस्तु क्या होगी.  आमतौर पर सलमान रुश्दी अपने अधूरे या अलिखित कृतियों के बारे में बात नहीं करते या बात करने से बचते हैं. उस समय कुछ लोगों को यह भी लगा कि कश्मीर में बिताये गए पुराने दिनों का नास्टैल्जिया उन्हें खींच लाया होगा.

कुछ समय बाद उनका उपन्यास शालीमार द क्लाउन [२००५] प्रकाशित हुआ जो कश्मीर में फैले आतंकवाद को लेकर था. किस प्रकार आतंकवाद ने जन्नत जैसी घाटी को तबाह कर दिया था.  सलमान रुश्दी का यह उपन्यास एक तरफ यह दिखता है कि कश्मीर की पुरानी  पीढ़ी किस प्रकार आतंकवाद के खिलाफ थी मगर धीरे धीरे यह नैतिक प्रतिरोध किस प्रकार समाप्त होता गया. दूसरी तरफ यह उपन्यास कश्मीर में आतंकवादियों के बीच एक दौर की अंदरूनी लड़ाई और अंतर्विरोध को भी रेखांकित करता है. साथ ही साथ यह कृति आतंकवाद के अन्तर्राष्ट्रीय चरित्र को भी बताता है. आज यह बात आमतौर पर जानी  जाती है. पेरिस हमलों ने इसे साफ़ किया है. उपन्यास का मुख्य पात्र शालीमार आतंकवाद की ट्रेनिंग फिलिपींस से पाता है.

शालीमार द क्लाउन आधा कश्मीर की पृष्ठभूमि में है तो आधा यूरोप में. वहां आतंकवाद के विरोध कि प्रवृति  द्वितीय विश्वयुद्ध कि दहशतों से जुडी है . इंडिया नाम की लड़की इस उपन्यास में शालीमार के बाद सबसे महत्वपूर्ण पात्र है.  उपन्यास के अंत में आतंकवाद और उसकी विरोधी शक्तियां एक दूसरे के सामने खड़ी मिलती हैं. यह उपन्यास रुश्दी के साहित्य की सारी विशेषताओं के साथ मिलता है.-खासकर उनके जादुई यथार्थवाद के साथ.
                                                                                          

Sunday, November 15, 2015

कश्मीर पर साहित्य 

कश्मीर से पोस्ट कार्ड/ कविता / आगा शाहिद अली 

[आगा  शाहिद अली कश्मीर से निकले अंग्रेजी के कवि थे जिन्होंने अंग्रेजी साहित्य में ग़जल जैसी विधा को प्रस्तुत किया. आतंकवाद के दौर में वे कश्मीर से बाहर अमेरिका में रहे. २००१ में उनका निधन हुआ. उनकी यह प्रसिद्ध कविता कम शब्दों में कश्मीर से जुड़े उनके मनोभावों को व्यक्त करती है. यह कविता उनकी  Postcard from Kashmir शीर्षक कविता का हिंदी अनुवाद है.]






कश्मीर से पोस्टकार्ड 


कश्मीर मेरी पत्रपेटिका में सिमट गया है
लगभग चार गुणे छह इंच का मेरा घर

मुझे हमेशा सफाई पसंद थी, और अब
मेरे हाथ में है आधे इंच का हिमालय .

यह मेरा घर है. घर से इतना करीब
अब फिर कभी नहीं हो पाउँगा मैं .
जब मैं लौटूंगा रंग इतने चटख नहीं होंगे

झेलम का  पानी इतना साफ़
इतना नीला . मेरा प्रेम
इतना निराच्छादित

और मेरी स्मृति थोडा
विकेन्द्रित होगी. और इसमें
एक महाकाय निगेटिव, काली
और सफ़ेद, फोटो बनने से पहले.






Friday, November 13, 2015

कश्मीर पर साहित्य
विभा कौल/स्वप्निल श्रीवास्तव
[ विभा कौल स्वप्निल श्रीवास्तव की ऐसी कविता है जिसमें कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन को एक पात्र के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है. विभा कौल एक वास्तविक स्त्री हैं जिनका नाम कवि ने बदल दिया है. इस कविता में करूण प्रसंग की भावुकता को स्वप्न कि संवेदनशीलता से जोड़ दिया गया है.संवेदनशील विभा के मन में पुराने कश्मीर की यादें हैं जिन्हें बाद के समय कि भयावहता से तमाम बिम्बों के माध्यम से जोड़ दिया गया है. यह कविता स्वप्निल श्रीवास्तव के कविता संग्रह ' मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिए' में संगृहीत है. संग्रह में वर्णित समय के अनुसार कविता के लिखे जाने का समय १९९०-९९ के बीच का है.]


विभा कौल
[ उस लड़की के लिए जिसका नाम विभा कौल नहीं है ]

श्रीनगर से दिल्ली की कठिन
 यात्रा में बहुत रोयी  होंगी विभा कौल
अपना घर , नदी, पहाड़, जंगल
अचानक एक हादसे में छोड़ आना
उनके लिए त्रासद अनुभव है

रास्ते भर पीछे मुड़कर देखने की
 आदत अभी नहीं छूटी है
शायद दूर से दिख जाए
अपना छूटा हुआ घर

डल झील के मटमैले रंग में
ठिठके हुए शिकारे की परछाईं
उनकी आँखों में कांपती है

बीच-बीच में गोली की आवाज़ से
चिहुक उठती हैं विभा कौल

उन्हें बगीचे में सेब का गिरना
घटना की तरह याद आता है

वे अब नहीं देख पाएंगी
आँगन में लगे गुलमोहर के
पहले फूल
वहां के बसंत पतझड़

बचपन के पहाड़ों के बारिश, उससे
उठती हुए सोंधी महक उन्हें भूलनी होगी
क्या यह आसन होगा विभा कौल
के लिए


विभा कौल के साथ बहुत सी हैं
विभा कौल
वे ठण्ड के डर से पहाड़ से मैदान
में बलात उतर आयीं चिड़ियाएँ
नहीं हैं, जो मौसम के सामान्य
होने पर वापिस लौट जाएँ .

घोसला बनाने के पहले
तिनके-तिनके हो गयी विभा कौल
उन्हें करूण प्रसंग की  तरह  याद
करने से अच्छा है उन्हें अपने
सपनो में जगह दी जाय

ऐसा नहीं था उनका शहर
लोगों के हांथों में फूलों के गुच्छे
और चेहरों पर उत्फुल्लता थी

आज कन्धों पर बंदूकें
और आँखों में
 बेशुमार गुस्सा है
बाररूद के धुएं में भर गयी है
घाटी
सेब खाते हुए भय लगता है
कहीं उसमें बारूद न भरी हो

कैसे आततायी शहर में आ गए हैं
वे लोगों  को परिंदों की तरह
मार रहे हैं

चीड़ के वन में गुजरती है
सांय-सांय करती हवाएं
बर्फीले मौसम में मुश्किल से
सड़क पार कर पाती है लड़की

नदियों पहाड़ों के प्रसंग
गोली से मारे गए लोगों की
दुखद सूचनाओं से भर गए हैं

विभा कौल के पास काश्मीर के खुशगवार
और चमकीले दिनों की यादें हैं
उनकी तरह सफ़ेद बादलों की छांह में
वह आपने अकेलेपन के साथ भीगती है

दिल्ली कि भीड़-भाड़ भरी सड़कों पर
उन्हें चलते हुए देखिये
उनकी निस्संगता हतप्रभ करने
वाली होती है

जिसने सहा होगा अपनी जमीन से
बेदखल होने का दुःख वही
विभा कौल के मर्म को समझ
सकता है,
लेकिन यहाँ ज़मीन पर कौन है!





Thursday, November 12, 2015

कश्मीर पर साहित्य 
[इधर राजनीतिक प्रचार के अंतर्गत लेखकों पर यह गलत आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने कश्मीर पर कुछ नहीं लिखा है. मैं समझता हूँ कि यह एक दुष्प्रचार है जिसे बहुधा सही मान लिया जाता है, ऐसा एक ग़लतफ़हमी के कारण भी हो सकता है जो अक्सर किसी विशिष्ट साहित्य के प्रकाश में न आ पाने की  वजह से होती है. साहित्य के एक पाठक की हैसियत से मैं समझता हूँ कि यह गलतफहमी नहीं बनी रहनी चाहिए. इसलिए कश्मीर पर रचे गए कुछ साहित्य को मित्रो के सामने रखने का प्रयास कर रहा हूँ. आशा है यह साहित्य आप लोगों को पसंद आयेगा .]

स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ


कश्मीर में सेब -1 

कश्मीर के सेब पर
दरिंदो के नज़र है
उन पर जहरीले दांत  गड़े हैं

फल संरक्षकों, सेब को बचा लो
शिकारियों तुम्हारी बंदूकें कहाँ हैं
मन को मिठास और ताजगी से
भर देने वाले सेब में
कडुवाहट आ गयी है
वे बारूद और धुएं में पक रहे हैं.

वनस्पतिशास्त्रियो, पहचानो
सेब को कौन सा रोग  लग गया  है
वही मिटटी वही हवा, वही जल
लेकिन फल को खाते समय
भीगती नहीं आत्मा
दुश्मनों के चेहरे सामने आते हैं.


कश्मीर में सेब -2

पहली बार जमीन पर गिरा
होगा सेब
धरती से धूल  उठी होगी
उड़े होंगे परिंदे
पास खड़े बच्चे के मुह में
मिठास भर गयी होगी
उसने उसे एक दुर्लभ  चीज कि तरह
ज़मीन से उठाया होगा

आज कश्मीर में गिरते हैं
जब सेब
सेब कि जड़ें कांप उठती हैं .

[ कश्मीर में सेब कविताएँ १९८७ में लिखी गयी थीं . ये कविताएँ हिंदी के प्रसिद्ध पत्र जनसत्ता में प्रकाशित हुई थीं.]





Tuesday, November 10, 2015

कविता में शहर 

हिंदी के सुपरिचत कवि सुधीर सक्सेना के साथ लखनऊ में हुई  एक मुलाकात के दौरान  उन्होंने मुझे अपनी लम्बी कविता धूसर में विलासपुर प्रदान की. अपनी कुछ व्यस्तताओं के चलते मैं इस कविता को तुरंत नहीं पढ़ पाया. मगर कुछ  फुरसत में होने पर मैंने इस पुस्तिका को पढ़ना प्रारंभ किया. शुरू किया तो अंत तक पढ़ता  चला गया. 

यह कविता विलासपुर की उन गहरी स्मृतियों से जुडी है जो कवि के ह्रदय में बसी हुई हैं . ये स्मृतियाँ कवि को शहर के साथ अपने प्रारम्भिक दौर की यादों से जोड़ती है  जो अब धूसर हो गयी है. धूसर शब्द का तात्पर्य उन धुंधली पड़ती स्मृतियों से ही है जो कवि को शहर के  इतिहास, पौराणिक पृष्ठभूमि, राजनीति, संस्कृति तथा मित्रजनो तक पहुंचाती है. यहाँ नए पुराने साहित्यकार और कलाकार भी हैं जिनसे  शहर की  सांस्कृतिक पहचान है., शहर के भूत और वर्तमान से जुड़े हुए. यह कविता पुराने नगर कि खोज है और उसे नए परिवर्तित होते विलासपुर से जोड़कर देखने का प्रयास भी है. यहाँ पुराने शहर के प्रति प्रेम एक नास्टैल्जिया है, एक अतीतकमना, जो परोक्षतः उन मूल्यों को रेखांकित करता है जिनसे शहर विलासपुर जुड़ता है. यह मूल्यों के क्षरित होने की  भी कहानी है जिसे  हम विलासपुर में ही क्या देश के  हर शहर में देख सकते हैं.

वास्तव में यह कविता एक शहर के इतिहास भूगोल और संस्कृति में मनुष्यता के निशानों कि खोज है जो आज के निर्मम परिवर्तनों में कमजोर होते जा रहे हैं. सारे शहर को बाज़ार निगलता जा रहा है, और संस्कृति  पर उपभोक्तावाद चढ़ता जा रहा है. इसका एक प्रतीक है पानी. शहर में पानी जमीन के नीचे धंसता जा रहा है. साथ ही साथ वह जहरीला होता जा रहा है.

सुधीर सक्सेना कविता में यात्रा वृत्तान्त को लाने वाले कवि रहे हैं. धूसर में विलासपुर को पढना एक यात्रा से गुजरने के सामान ही  है जिसमे हम इतिहास और वर्तमान से गुजरते हुए एक शहर में होते परिवर्तनों में अपने समय का आइना देखते  हैं.
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धूसर में विलासपुर/ कवि: सुधीर सक्सेना / लोकमित्र प्रकाशन, दिल्ली / २०१५ / मूल्य १०० रुपये 



Monday, November 09, 2015

                          भारत और नेपाल के संबंध 

कल NDTV को दिए गए एक साक्षात्कार में अरुण शौरी ने यह खुलासा किया कि भारत नेपाल में मधेशियों के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया है. उन्होंने यह भी कहा कि इससे भारत और नेपाल के बीच के सम्बन्ध ख़राब हो सकते हैं. देखा जाय तो यह कूटनीतिक दृष्टि से सही फैसला नहीं है क्योंकि नेपाल से बातचीत का रास्ता ही बेहतर था. प्रचंड और नेपाल के अन्य नेता बातचीत के लिए तैयार ही थे. अब यदि नेपाल चीन की  ओर उन्मुख होगा तो कोई विकल्प नहीं बचेगा. सुनायी दे रहा है कि चीन अब नेपाल कि मदद करने को तैयार है और नेपाल के लिए रास्ता मांग रहा है. यदि ऐसा होता है तो नेपाल से जुड़े क्षेत्र खतरे कि छाया में आ जायेंगे. दोनों देशों के बीच के तनाव को दूर करने के राजनीतिक प्रयास तुरंत प्रारंभ किये जाने चाहिए.