कविता
प्रारम्भ
एक बच्चा
खींचता है
एक पड़ी लकीर
और एक बेंड़ी
बायीं ओर एक गोला
दायीं ओर एक पूँछ
बना देता है
'क'
यहीं से
शुरू होती है
कविता
इसी तरह
लिखा जाता है
इतिहास
रघुवंशमणि
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
साहित्य और संस्कृति
5 comments:
वाह, सृजन की शुरुवात.
बहुत खूब.
सच्ची बात्………
अच्छा कहन है।
आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये
आपकी कविताएँ आज पढीं - बहुत अच्छी लगीं - अनूठी- साफ, गमक की हवा सी - लगा जब दुःख भी बोलती हैं आशा से बोलती हैं - इन्हें बांटने का बहुत धन्यवाद - साभार - मनीष
Post a Comment