Friday, September 21, 2007

प्रारम्भ

कविता


प्रारम्भ

एक बच्चा
खींचता है
एक पड़ी लकीर
और एक बेंड़ी
बायीं ओर एक गोला
दायीं ओर एक पूँछ

बना देता है
'क'

यहीं से
शुरू होती है
कविता

इसी तरह
लिखा जाता है
इतिहास


रघुवंशमणि

5 comments:

Udan Tashtari said...

वाह, सृजन की शुरुवात.

बहुत खूब.

पारुल "पुखराज" said...

सच्ची बात्………

बोधिसत्व said...

अच्छा कहन है।

deepanjali said...

आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये

Joshim said...

आपकी कविताएँ आज पढीं - बहुत अच्छी लगीं - अनूठी- साफ, गमक की हवा सी - लगा जब दुःख भी बोलती हैं आशा से बोलती हैं - इन्हें बांटने का बहुत धन्यवाद - साभार - मनीष