Sunday, September 09, 2007

उ.प्र. की छात्र राजनीति में गुण्डई का प्रतिशत

डायरी

उ.प्र. की छात्र राजनीति में गुण्डई का प्रतिशत

मायावती सरकार द्वारा उ.प्र. के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनावों पर लगाया गया प्रतिबंध सराहनीय और स्वागतयोग्य है। विगत एक दशक से प्रदेश की छात्र राजनीति का बहुत बड़ा हिस्सा गुण्डों के हाथ में चला गया है। प्रत्येक सत्र में इन गुण्डों की वजह से शिक्षा जगत के परिसरों में अच्छी-खासी गुण्डई फैली हुई है। हर साल परिसर में हत्याओं, मारपीट और आतंकित करने की घटनाएँ आम होती गयी हैं। प्रदेश में शान्ति व्यवस्था बनाने के लिए इनसे निपटना जरूरी है।

पिछले वर्ष ही उ.प्र. के बस्ती जिले में एक अध्यापक की हत्या एक छात्र द्वारा कर दी गयी थी। उससे पहले चुनाव के ही अवसर पर एक विद्यालय के गेट पर ही एक हत्या हो गयी थी। हिन्दुस्तान अखबार के अनुसार लखनउ विश्वविद्यालय पिछले दो सालों में चार हत्याएँ हो चुकी हैं। फैजाबाद के एक अध्यापक पर बम फेका गया। छात्र नेताओं या उनके छुटभैयों द्वारा की जाने वाली इस प्रकार की आपराधिक घटनाएँ आम होती जा रही हैं। ये छात्र नेता अक्सर आपराधिक पृष्ठभूमि के होते हैं और ठेकेदारी जैसे व्यवसायों में लगे होते हैं। कुछ छात्र तो शहर के डाक्टरों वगैरह जैसों और अन्य व्यवसायियों से जबर्दस्ती धन वसूली भी करते हैं। छात्र नेता हो जाने पर पुलिस इन पर हाथ डालने से डरती है। कुल मिलाकर तरह-तरह के अपराधों में लिप्त इन छात्र नेताओं पर प्रतिबंध जरूरी था।

अब इन छात्र नेताओं के समर्थन में तमाम सैद्वान्तिक बाते की जाती है। प्रजातंत्र और नागरिक अधिकारों की दुहाई दी जा रही है। मगर इस व्यावहारिक बात पर नज़र क्यों नहीं जाती कि इन छात्र नेताओं के जिम्मे कोई सार्थक काम नहीं बचा है। जहाँ तक अच्छे छात्र नेताओं का सवाल है, उनका प्रतिशत बहुत ही कम है। अगर वे कहीं हैं भी तो अक्सर वे गुण्डई के चलते नहीं ही जीतते। ये गुण्डे छात्र नेता कभी भी अन्याय के विरुध्द आवाज नहीं उठाते। ये अक्सर नेतागीरी का नाटक करते हैं और इनका उद्देश्य केवल ब्लैकमेल करना, रंगबाजी करना, अध्यापकों को धमकियाना और महाविद्यालयों के शैक्षिक वातावरण को खराब करना होता है। जिन महाविद्यालयों में छात्रसंघ नहीं है, वहाँ इस तरह की समस्याएँ भी कम हैं। पूछा जा सकता है कि आखिर ये शिक्षण संस्थाएँ क्या कोई उत्पादक स्थल हैं जहाँ छात्ररूपी मजदूरों को यूनियन की जरूरत पड़े।

दरअस्ल राजनीति को ऐसे छात्र नेताओं या युवा गुण्डों की जरूरत पड़ती है जो गुण्डई के बल पर पाटिर्यों को वोट दिला सकें। वे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का इस्तेमाल राजनीति के प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में करते हैं। वह भी घटिया राजनीति के प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में। लेकिन इस सब से महाविद्यालयों की संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है। महाविद्यालयों में गुडई बढ़ती है और शिक्षा सत्र बुरी तरह प्रभावित होता है यही नहीं परीक्षा के दौरान भी ये तत्व नकल वगैरह को बढ़ावा देते-दिलाते हैं। विद्यालयों को इस प्रकार की घटिया राजनीति से मुक्ति दिलाना जरूरी है।

यह मजे की बात है कि राज्य सरकार के इस फैसले के कुछ ही दिन पूर्व न्यायालय ने भी एक ऐसा ही फैसला सुनाया है। इससे राज्य सरकार के फैसले के सही होने को प्रमाण मिलता है। लेकिन सामान्य अभिभावक और छात्र तो पहले से ही ऐसे किसी निर्णय की प्रतीक्षा में थे। यही कारण है कि इस निर्णय को अभिभावकों और प्रतिभाशाली छात्रों का पूरा समर्थन है।



रघुवंशमणि

1 comment:

Harish K. Thakur said...

Aajkal aapka swasthya kaisa hai Mani saheb. kaffi din se baat nahin hui...kafi achha blog banaya hai aapne...