पराया धन [१९७१]

इधर टेलीविज़न पर पराया धन दोबारा देखी. इस फिल्म को पहले कभी १९८२-८३ के आस-पास फैजाबाद के किसी टाकिज में देखा था. अब ठीक से याद नहीं. लेकिन फिल्म दुबारा देखने की इच्छा इसीलिए हुई कि मालूम था कि फिल्म अच्छी है. वाकई यह एक कम चर्चित मगर अच्छी हिंदी फिल्म है. सुंदर गीतों से भरी यह फिल्म हिमांचल के किसी छोटे से गाँव में फिल्माई गयी है जिसकी प्राकृतिक छटा देखने लायक है.. फिल्म के कुछ बम्बइया नाटकीय हिस्सों को छोड़ दें तो एक बड़ा हिस्सा काव्यात्मक है जो लम्बे समय तक दिल में बसा रहता है. फिल्म देखते समय रेणु या थॉमस हार्डी के उपन्यासों का माहौल याद आ जाय तो कोई आश्चर्य नहीं. इसे निर्देशन और कैमरे का कमाल ही समझाना चाहिए.
इस फिल्म को बलराज साहनी के जबरदस्त अभिनय के लिए याद किया जाना चाहिए जिन्होंने भावनाओं को गजब का अंडरप्ले किया है. जितनी बार देखें नयी चीज लगेगी. शायद बलराज जी के समय तक यह नयी बात रही होगी. आज तक भी हिंदी सिनेमा में उनके स्तर के कलाकार ज्यादा नहीं हुए हैं. उनके अभिनय में भावनाएं बेहद सहजता के उभरती और गुजरती है.
हेमा मालिनी अपने अभिनय की कुछ कमजोरियों के बावजूद शबाब पर थीं और अभिनय के मामले में भी यह उनकी बेहतरीन फिल्मों में होगी. इस फिल्म में चरित्र के विभिन्न पक्षों को उन्होंने सामने किया है. वोह कहीं सीधी गाँव की लड़की है तो कहीं शोख अदा वाली प्रेमिका तो कही जंगली बिल्ली. अजीत अपने परिचित रंग में हैं और राकेश रोशन हमेशा कि तरह औपचारिक.
फिल्म Zclsssic पर फिर दिखाई जा सकती है , मौका न चूकें.






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