Tuesday, November 10, 2015

कविता में शहर 

हिंदी के सुपरिचत कवि सुधीर सक्सेना के साथ लखनऊ में हुई  एक मुलाकात के दौरान  उन्होंने मुझे अपनी लम्बी कविता धूसर में विलासपुर प्रदान की. अपनी कुछ व्यस्तताओं के चलते मैं इस कविता को तुरंत नहीं पढ़ पाया. मगर कुछ  फुरसत में होने पर मैंने इस पुस्तिका को पढ़ना प्रारंभ किया. शुरू किया तो अंत तक पढ़ता  चला गया. 

यह कविता विलासपुर की उन गहरी स्मृतियों से जुडी है जो कवि के ह्रदय में बसी हुई हैं . ये स्मृतियाँ कवि को शहर के साथ अपने प्रारम्भिक दौर की यादों से जोड़ती है  जो अब धूसर हो गयी है. धूसर शब्द का तात्पर्य उन धुंधली पड़ती स्मृतियों से ही है जो कवि को शहर के  इतिहास, पौराणिक पृष्ठभूमि, राजनीति, संस्कृति तथा मित्रजनो तक पहुंचाती है. यहाँ नए पुराने साहित्यकार और कलाकार भी हैं जिनसे  शहर की  सांस्कृतिक पहचान है., शहर के भूत और वर्तमान से जुड़े हुए. यह कविता पुराने नगर कि खोज है और उसे नए परिवर्तित होते विलासपुर से जोड़कर देखने का प्रयास भी है. यहाँ पुराने शहर के प्रति प्रेम एक नास्टैल्जिया है, एक अतीतकमना, जो परोक्षतः उन मूल्यों को रेखांकित करता है जिनसे शहर विलासपुर जुड़ता है. यह मूल्यों के क्षरित होने की  भी कहानी है जिसे  हम विलासपुर में ही क्या देश के  हर शहर में देख सकते हैं.

वास्तव में यह कविता एक शहर के इतिहास भूगोल और संस्कृति में मनुष्यता के निशानों कि खोज है जो आज के निर्मम परिवर्तनों में कमजोर होते जा रहे हैं. सारे शहर को बाज़ार निगलता जा रहा है, और संस्कृति  पर उपभोक्तावाद चढ़ता जा रहा है. इसका एक प्रतीक है पानी. शहर में पानी जमीन के नीचे धंसता जा रहा है. साथ ही साथ वह जहरीला होता जा रहा है.

सुधीर सक्सेना कविता में यात्रा वृत्तान्त को लाने वाले कवि रहे हैं. धूसर में विलासपुर को पढना एक यात्रा से गुजरने के सामान ही  है जिसमे हम इतिहास और वर्तमान से गुजरते हुए एक शहर में होते परिवर्तनों में अपने समय का आइना देखते  हैं.
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धूसर में विलासपुर/ कवि: सुधीर सक्सेना / लोकमित्र प्रकाशन, दिल्ली / २०१५ / मूल्य १०० रुपये 



1 comment:

Harish K. Thakur said...

kuch kavita ke stanzas bhi dalte to adhik rochak hota raghuvansh ji, thnax for sharing