Monday, October 20, 2008

बिहारी होने का मतलब

डायरी

बिहारी होने का मतलब

महाराष्ट्र में राज ठाकरे के वक्तव्यों और उसके बाद की हिंसक घटनाओं से बड़ी गहरी चिन्ताएँ पैदा होती हैं। यह बड़ी ही अजीब सी बात है कि अपने ही देश में एक प्रदेश का निवासी दूसरे प्रदेश में नौकरी की तलाश में न जा सके। हाल में जो घटनाएँ घटित हुई हैं वे भारत के नागरिकों के अधिकारों को ही निरस्त करने वाली हैं। देश में बहुत सी नौकरियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चयन होते हैं और लोग आवेदन करते हैं। अब यदि इस तरह की हिंसात्मक पाबंदियाँ लगायी जायेंगी तो इसका बहुत ही बुरा परिणाम होगा। मान लें कि इसी प्रकार हर प्रदेश के लोग हिंसा के द्वारा दूसरे प्रदेश के लोगों को अपने यहाँ आने से रोक दें तो क्या होगा? लेकिन दिक्कत यह है कि हम सोचने के बजाय अब मारपीट पर अधिक विश्वास करने लगे हैं। समझदारी के लिए सबसे कम जगह बची है।

अब लगता है कि बिहारी होना एक रूपक होता जा रहा है। एक ऐसा रूपक जिसके सामाजिक निर्माण के पीछे हिंसा और वर्चस्व का बोलबाला है। हर वह आदमी बिहारी होने की नियत झेले जो अपने बेहतर भविष्य की कामना करता है, और अपने प्रदेश के बाहर जाना चाहता है। यह दुखद ही है कि हम ऐसे समय में रह रहे है जिसमें हर मुद्दे को बड़ी छुद्र दृष्टि से देखा जा रहा है। जाति, धर्म और क्षेत्रीयता ने ऐसी गहरी विभाजक रेखाएँ खीच दी हैं कि किसी व्यापक सोच की सम्भावना ही खत्म होती जा रही है। हर समस्या का इलाज हिंसा को ही माना जा रहा है और अपनी बात को बलपूर्वक सही सिध्द करने का प्रयास किया जा रहा है। यह स्थिति निश्चित रूप से ऐसी दिशा में ले जायेगी जहाँ से वापस आना बहुत मुश्किल होगा। मगर शायद इस बात को समझने मे ठाकरे जैसे लोग और उनके समर्थक सक्षम नहीं।

अक्सर हम अपने तात्कालिक स्वार्थों को ही सामने रख पाते हैं और व्यापक हितों को नजरन्दाज करते हैं। सही गलत के निर्णय के बजाय हम बस अपने तक ही सीमित रह जा रहे हैं। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि जो लोग छोटे दायरों से शुरू होते हैं वे अनतत: स्वयम् पर ही जाकर समाप्त होते हैं। राधाकृष्णन जी ने परोक्षरुप से ऐसी प्रवृत्ति की ओर संकेत किया था जो सर्वसत्तावाद और तानाशाही की ओर ले जाती है। इसके बरक्स समझदारी की संस्कृति ही एक मात्र रास्ता है। मगर यह रास्ता लम्बा है और इसमें कोई शार्टकट नहीं है।

हममें से बहुत लोग अपने गाँव, शहर या राज्य को छोड़कर दूसरी जगहों पर नौकरियाँ करने जाते हैं। हिन्दुस्तान के ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है जो विदेशों में रह रहे हैं। ये सभी लोग किसी न किसी अर्थ में बिहारी ही हैं। वे महाराष्ट्र के लोग भी जो बाहर कहीं काम कर रहे हैं। यदि हम महाराष्ट्र में पीटे जा रहे बेरोजगारों की जगह पर स्वयं को रखकर देख सकें तो हम सब बिहारी ही होंगे।

2 comments:

Gyan Darpan said...

यह देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ ठाकरे जेसे लोग आसानी से अपनी राजनीती चला रहे है और उससे भी बड़ा दुर्भाग्य कि इन पर किसी भी तरह कारवाही करने से सरकार डर रही है सिर्फ़ कुछ वोटों के लिए |

श्रीकांत पाराशर said...

Raj thakre jaise log desh ke asali dushman hain jo aadmi admi ke beech ghrina faila rahe hain. inki soch ati sankeeran hai. kuye ke mendhak hain ye. sankeeran soch walon par mera ek lekh hai mere blog par.agar samay mile to padhiyega, shayad aapko achha lage.