Sunday, July 25, 2010

क्या कबीर वर्णव्यवस्था के समर्थक थे??

डायरी

क्या कबीर वर्णव्यवस्था के समर्थक थे??

१८. ७. २१

फैज़ाबाद में मेरे आवास पर हुई चर्चा के दौरान डा वागीश शुक्ल ने कबीर को वर्णव्यवस्था समर्थक का सिद्ध करने के लिए कबीर की ही साखी प्रस्तुत की।

॑॑ सकल बरण एकत्र् ह`वै सकति पूजि मिलि खांहि।
हरिदर्शन की भ्रान्ति करि केवल जमपुर जॉंहि।। ॔॔

कबीर की यह साखी अपेक्षाकृत कम प्रचलित है, इसलिए मेरे सहित वहॉं उपस्थित हिन्दी युवा कवि विशाल श्रीवास्तव, संस्कृत विद्वान महेश मिश्र, वरिठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव और उर्दू साहित्य की विदुषी बुशरा खातून ने उनकी बात को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लिया। लेकिन बाद में इस साखी का अर्थ देखने पर पता चला कि इसका वर्णव्यवस्था से कोई मतलब ही नहीं है। वास्तव में इस साखी का अर्थ तो निम्नवत` है

"॑॑ समस्त वर्ण् के लोग शक्तिपूजा के नाम पर इकठ`ठे होकर मॉंस भक्षण करते हैं, वे सिर्फ़ हरिभक्त होने की भ्रान्ति पैदा करते हैं। वे वास्तव में भक्त नहीं होते। वे केवल यमपुर की यात्रा करते हैं।॔॔

कबीर, ग्रंथावली, संपादक रामकिशोर शर्मा, लोकभारती, २६, पृ. २२३.

कबीर की इस साखी को शक्तिपूजा या मॉंस भक्षण के सन्दर्भ में तो प्रस्तुत किया जा सकता है, मगर वर्णव्यवस्था के समर्थन के लिए इसका इस्तेमाल बिलकुल गलत है। वास्तव में इस दोहे का वर्णव्यवस्था से कोई सम्बन्ध है ही नहीं। सवाल यह है कि दूसरों के संदेहों और अज्ञान का फायदा उठाकर उन्हें गलत जानकारी देने वाले डा वागीश शुक्ल जैसे विद्वानों का क्या किया जाय?? वे उन्हीं मध्यकालीन ब्राह`मणों के समान हैं जो वेद के नाम पर जनता को कुछ भी समझा दिया करते थे।

फिलहाल मेरा सवाल यह है कि क्या आपको लगता है कि कबीर वर्णव्यवस्था के समर्थक थे?? क्या आपको कबीर की कोई ऎसी प्रमाणिक पंक्ति याद आती है जिसमें वे वर्णव्यवस्था के समर्थक लगते हों?? आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

1 comment:

रघुवंशमणि said...

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