Thursday, June 09, 2011

शस्त्र, शास्त्र और गाॅधीवाद

रघुवंशमणि



योगगुरु बाबा रामदेव कुछ दिनों पूर्व तक बेहद सफल व्यक्तित्व नज़र आ रहे थे। उन्होंने योगाभ्यास और आयुर्वेदिक स्वास्थ औषधियों की शानदार व्यवसायिक पैकेजिंग की थी और पूरी दुनियाॅं में अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिये थे। फिर उन्होंने पूरे देश में यात्रा करके बाकायदा अपनी भारतीय स्वाभिमान पार्टी के लिए पृष्ठभूमि भी तैयार कर ली थी। दिल्ली में अनशन के अभियान के समय तो ऐसा लगा कि सरकार उनके सामने झुक गयी है। मगर उसके बाद की राजनीतिक गतिविधियों के दौरान बाबा रामदेव विचलित नज़र आये और उनके वक्तव्यों से यह जाहिर होने लगा कि योगाभ्यास के दौरान योगासनों पर उनका कितना भी अभ्यास क्यों न रहा हो, राजनीति के आसन पर वे अभी ठीक से बैठने का अभ्यास नहीं कर पाये हैं।

कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली की सत्ता ने पूलिसिया बल प्रयोग के द्वारा जब उन्हें रामलीला मैदान से हटाया तो मीडिया ने बाबा को जबर्दस्त एक्सपोजर दिया। अन्ना हजारे ने अपने पुराने सहयोगी के समर्थन में और पुलिसिया गतिविधि के विरोध में गाॅंधी जी की समाधि पर आठ घंटे का अनशन रखा। आर. एस. एस. और बी.ज.ेपी. को तो स्वामी जी का समर्थन करना ही था। पूरे देश में बुद्धिजीवियों ने भी रामदेव के साथ हुई इस घटना की भूरि-भूरि निन्दा की। यह सब बाबा के समर्थन में ही हुआ। यहाॅं तक कि साम्यवादी दलों के समर्थकों ने भी बाबा का समर्थन न करते हुए भी इस घटना की निन्दा की और सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। इस प्रकार बाबा को मिलने वाला यह बड़ा समर्थन था।

मगर बाबा रामदेव ने हरिद्वार पहुॅंचने के बाद जिस प्रकार के वक्तव्य दिये वे किसी राजनीतिक नेता के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं कहे जायेंगे। उनकी स्थिति स्व. टिकैत या योगी आदित्यनाथ से बेहतर नहीं थी जो मौके-मौके पर कैमरे के सामने रोते रहे हैं। किसी भी नेता के पीछे चलने वाली जनता अपने नेताओं के आॅंसुओं से भावुक तो हो सकती है, मगर वास्तव में वह अपने नेताओं को विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत और दृढ़ देखना चाहती है। बाबा रामदेव का यह कहना कि सरकार उनकी हत्या कराना चाहती है, किसी के भी गले से नीचे उतरने वाली बात नहीं थी क्योंकि यदि सरकार उन्हें मारना-मरवाना चाहती तो उसके पास काफी वक्त था। फिर बाबा का यह कहना कि उनके 5000 कार्यकत्र्ता गायब हैं, निहायत ही अविश्वसनीय बात थी।

लेकिन सबसे राजनीतिक गैरसमझदारी से भरी बात उन्होंने तब कही जब उन्होंने अपने शिष्यों से शास्त्र सीखने के साथ शस्त्र उठाने की भी बात कही। अभी चार दिन पहले तक गाॅंधीवादी तरीके से अहिंसक आन्दोलन और अनशन करने वाले बाबा रामदेव का क्या अपने सिद्धान्तों से इतनी जल्दी मोहभंग हो गया? गाॅंधी जी ने अपने लगभग तीन दशकों की अहिंसात्मक लड़ाई में बहुत बार गिरफतारियाॅं दीं, उनके समर्थक मारे पीटे गये, जेल में ठूॅंसे गये, मगर उन्होंने कभी भी अपनी अहिंसा की राजनीति पर अविश्वास नहीं व्यक्त किया। उन्होंने अपने अहिंसात्मक संघर्ष के तरीके पर केवल एक बार अविश्वास जाहिर किया था। वह समय था साम्प्रदायिक दंगों के उभरने का, जब बिहार और बंगाल खून से रंग गये थे। मगर यह उनके लिए अपनों से पराजित होने जैसी स्थिति थी। किसी राजनीतिक सत्ता के अत्याचार के सामने तो वे अपने अहिंसात्मक शस्त्र के साथ हमेशा डट कर खड़े रहे।

मगर बाबा रामदेव के समक्ष गाॅंधी जी जैसी कोई स्थिति नहीं थी। दिल्ली के रामलीला मैदान की घटना की निन्दा तो सभी ने की, मगर उन्हें जलियाॅंवाला बाग की घटनाओं के समान कहना अतिरेकपूर्ण ही होगा। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि बाबा पूरी तरह से विचलित हो गये और अहिंसा से हिंसा के रास्तेे पर उतर आये? वे हर जिले से आने वाले 20 स्वयंसेवकों को लाठी ही नहीं जूडो-कराटे भी सिखाने का संकल्प ले रहे हैं। यह उनके जैसे स्थपित व्यक्तित्व के लिए उचित नहीं और उनके राजनीतिक कच्चेपन का सबूत है। भारत का संविधान और उसकी मुख्यमार्गी राजनीति पार्टियाॅं परोक्षरूप से भले ही हिंसा का इस्तेमाल कर ले, वे इस प्रकार खुलेआम हिंसा का समर्थन नहीं करती।

बाबा रामदेव के इस प्रकार के वक्तव्यों से उन पर लगने वाले कांग्रेसी आरोपों की ही पुष्टि होती है कि वे दिल्ली में गड़बड़ी फैलाना चाहते थे। इससे यह भी प्रमाणित किया जायेगा कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह की ही राजनीति कर रहे हैं।

आज के दौर में अहिंसा की राजनीति करना आसान काम नहीं। यह एक दुधारी तलवार पर चलने जैसा काम है। इसके लिए सिर्फ मीडिया का समर्थन काफी नहीं होता। गाॅंधी स्वयं दृढ़प्रतिज्ञ थे और सत्याग्रह को चलाने की बुद्धिमत्ता भी उनमें कूट कूटकर भरी हुई थी। ये सभी बातें फिलहाल तो बाबा रामदेव में नहीं हैं।