Sunday, July 20, 2008

कविता

हम मॉंझी हुए फटी नाव के
प्रेमशंकर मिश्र

धूप के हुए न हुए छझांव के
हम मॉंझी हुए फटी नाव के।

चलना फिरना हंसना बोलना
किस्त किस्त क़रजो की वापसी
इनकी उनकी पीली नीली बातें
ऑंच चढ़े उड़ जाती भाप सी

ऐसे में कैसे कोई पंक्षी पर साधे
छिन पछुवा, छिन पछियांव के।

हम मॉंझी हुए फटी नाव के।




खेतों से कटना, बोझा बनना
दाने दाने की मजबूरी
रेह देह लहरों का आमंत्रण
बान बिंधी घायल कस्तूरी

बूंद बूंद रिस चुके बनमोहन
गंध के हुए न हुए भाव के।

हम मॉंझी हुए फटी नाव के।




गलती फसलें, चटके ताल हैं
अंधा सूखा, बहरी बाढ़
लूले को काम कुऑं खोदना
लंगड़े को लांधना पहाड़

धुएं धुएं धोखे के घनपॉंखी
शहर के हुए न हुए गॉंव के।

हम मॉंझी हुए फटी नाव के।



आओ रुकें क्षण दम लें
इतना ज्यादा है थोड़ा कम लें
पिंजरे की मैना से कुछ सीखें
खुशियॉं बॉंटें सारा गम लें

सििद्धहीन मंत्रों से क्या हासिल
अर्थ के हुए न हुए भाव के।

हम मॉंझी हुए फटी नाव के।

पं. प्रेमशंकर मिश्र का अवसान

पं. प्रेमशंकर मिश्र का अवसान

डॉ. रमाशंकर तिवारी त्रिभुवन ट्रस्ट
10, गंधमादन, लक्ष्मणपुरी फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश



शोक प्रस्ताव



कल 16.07.2008 की रात हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि और संस्कृतिकमी पं. प्रेमशंकर मिश्र जी का 83 वषZ की अवस्था में फैज़ाबाद के जिला चिकित्सालय में एक सप्ताह की बीमारी के बाद निधन हो गया। पं. प्रेमशंकर मिश्र को कविता अपने पिता द्विजेष जी से परम्परा में प्राप्त हुई थी। प्रारिम्भक दौर की पारम्परिक कविताओं के बाद वे नयी कविता और नवगीत आन्दोलनों से जुड़े और पर्याप्त ख्याति अर्जित की। प्रसिद्ध नवगीतकार शंभुनाथ सिंह ने मिश्र जी की कविताओं को अपने नवगीत संकलन नवगीत अर्धशती में स्थान देकर आपके महत्व को दषZया था। जीवन के अन्तिम दिनों तक वे कविता और संस्कृति के प्रति समर्पित रहे। सामान्य जीवन के सुखों और दुखों को अभिव्यक्ति देने वाली प्रेमशंकर मिश्र जी की कविता में साहित्य की कई परम्पराएं एक साथ चलती दिखायी देती हैं। पं. मिश्र जी के निधन से कविता की इन धाराओं की गंभीर क्षति हुई है।

संस्कृतिक परिवेश के निर्माण के उद्देश के प्रति समर्पित पं. प्रेमशंकर मिश्र जी की संस्था सम्पर्क ने फैजाबाद में साहित्य और संस्कृति से जुड़ी कई पीढ़ियों के लिए आगे बढ़ने का आधार निर्मित किया। अपनी संवादधमी प्रकृति के चलते वे विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े लोगों से विचार-विमष करते रहे। मनोविनोद की उनकी जीवन्त प्रवृत्ति ने साहित्यजगत में ही नहीं वरन् सामान्य जीवन में भी उन्हें लोकप्रिय बनाया। फैज़ाबाद के साहित्य और संस्कृति जगत में उनका अविस्मरणीय योगदान सदा याद किया जायेगा।

वे डॉ. रमाशंकर तिवारी त्रिभुवन ट्रस्ट के प्रारिम्भक सदस्यों में से थे। उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य संस्थान के साहित्य भूषण सम्मान मिलने के अवसर पर ट्रस्ट ने भी उन्हें सम्मानित किया था। कुछ समय पूर्व ट्रस्ट के तत्वावधान में पं. प्रेमशंकर मिश्र जी का एकल काव्यपाठ आयोजित किया गया था जिसे सहित्य प्रेमियों ने बहुत सराहा था। शोकाकुल मन से हमें यह कहना पड़ रहा है कि उनके अवसान से ट्रस्ट ने अपना अतिमहत्वपूर्ण और विशष्सनीय सहयोगी खो दिया है। यह हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है। पं. प्रेमशंकर मिश्र जी की स्मृतियॉं हमारे लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेंगी।




रघुवंश मणि
साहित्य सचिव